Monday, April 26, 2021

पैग़ाम

मेरी बंद आंखो में भी ,
तेरी ही तस्वीर नजर आती है ,
ख्वाबों में जाते ही मेरे ,
तुझसे दूरियां मिट जाती है ।

इश्क का इजहार हुआ नहीं कभी ,
नफरत का पैग़ाम छोड़ आए ,
यकीन मानों मंजूर नहीं कोई और ,
जिन रास्तों को तेरे नाम कर आए ।

मेरी आंखों से बहते सैलाब को ,
एक किनारा चाहिए ,
हर पल तुझे खो देने के डर से ,
छुटकारा चाहिए ।

तेरी गैर मौजूदगी में भी ,
तेरा एहसास तेरी मौजदगी बताता है ,
हर दफा जितनी बढ़ती है दूरियां ,
दरमियान हमारे ...
तु और करीब आता है ।

तुम्हें खुशियां देने के लिए ,
चलो सरल बन जाता हु ,
गर नहीं मंजूर चांद आसमां में ,
तो तारा बन जाता हु ।

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