Monday, May 3, 2021

शायद

शायद अल्फाजों से करते थे उनका श्रंगार ,

फेरती ना थी जुल्फों पर उंगलियां वो हर बार ,

शायद हम ही उन्हें अधूरा छोड़ आए ,

बिन मांगे फरियाद तोड़ आए ।


शायद अक्सर हर रात के अंधेरे में ,

आज भी वो चांद को निहारती होगी ,

शायद आज भी आईने में ,

ख़ुद को संवारती होगी ।


शायद आज भी होगा कोई हमराही ,

जिसके संग वो खो जाती होगी ,

शायद हमनें ना सुने जो किस्से ,

वो उन्हें सुनाती होगी ।


शायद आज भी होंगे जिक्र में कहीं हम ,

और फिक्र भी वो जताती होगी ,

शायद मंजिल यकीनन एक नहीं ,

फिर भी रास्ते वो बनाती होगी ।


शायद हम थे गलत बेशक उसकी निगाहों में ,

उलझे अक्सर धूप और छाव में ,

शायद आज भी वो अश्क बहाती होगी ,

हर दफा जब रूठ जाती होगी ।


शायद ये पल हो आखिरी मेरा ,

और अल्फाज भी रह जाए अधूरे ,

शायद रह गई रूह जिस्म में जिंदा ,

लौटेंगे इन अल्फाजों को करने पूरा ।


शायद छोड़ जा रहे ..

कुछ पल .. कुछ एहसास ,

कुछ यादें .. और कुछ अल्फाज ।


और हां गर नहीं लौटे कभी हम ,

कर देना तुम इन्हें पूरा ,

शायद जो किस्सा रह गया अधूरा ..।।


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