एक पीड़ा हैं जो आती है ,
रक्त बन बह जाती है ,
हर गुजरे लम्हों के ,
अक्सर बहुत सताती है ।
कमज़ोर कड़ी नाज़ुक घड़ी ,
सब कुछ बदल देती है ,
दर्द से गुजर कर भी ,
अक्सर वो मुस्कुरा लेती है ।
उम्र के एक छोर से ,
जिंदगी के डोर तक ,
नाता उसका रहता है ,
कोई उसे रोग ,
तो कोई दवा कहता है ।
थम जाता सफ़र जिसका ,
किसी जीवन के आने से ,
रखता है खुद को दूर जो ,
खुद को बहाने से ।
जन्म की उम्मीद मिटते ही ,
ये खुद को मिटा जाता है ,
क्या खूब अपना चरित्र ,
ये दुनिया को दिखाता है ।
रक्त चरित्र हो जिसका ,
उसे कोई रंग क्या रंग पायेगा ,
हर सुबह सूरज के उगने जैसे ,
वो भी अपने वक्त पर रक्त बहायेगा ।
No comments:
Post a Comment