क्या बगैर इश्क़ के भी ,
कहीं इश्क़ होता है क्या ,
इश्क़ की चाहता में ,
कभी कोई इश्क़ में रोता है क्या ?
ना पता होता इश्क़ के खुशबू का ,
ना वो कोई श्रृंगार से सजता है ,
इश्क़ में इज़हार का पता नहीं ,
हर दफा इनकार ही मिलता है ।
वक्त को पिंजड़ों में कैद ,
जज़्बातों को जो झुठलाता है ,
महबूब को छोड़ कर सबसे ,
शिद्दत से इश्क़ निभाता है ।
बेहद इश्क़ में होकर भी ,
जो इश्क़ की हदें बताता हैं ,
इश्क़ दिल की धड़कनों से कम ,
आंखों से ज्यादा बहाता है ।
क्या कभी इश्क़ में ,
अधूरा इश्क़ भी रह जाता है ,
सच्चे इश्क़ की दास्तां ,
एक पल में झुठलाता है ।
क्या सच में इश्क़ ,
इश्क़ की शर्ते बताता है ,
बेवजह बेमतलब इश्क़ ,
किस्मत वालों को मिल पाता हैं ?
खैर ,
इश्क मुबारक इश्क़ को ,
और आप को मुबारक उसकी आशिकी ,
इश्क़ के बगैर देखो ज़रा,
कितनी खूबसूरत है मेरी जिदंगी ।
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