Thursday, April 28, 2022

खुद सा इश्क़

एक अनजान सी लड़की ,
जो खुद से अजनबी बन कर बैठी हैं,
तन्हाइयों से कर के बातें,
खुद को कोसती रहती है ।

हर रोज़ थामती दामन उस सच का ,
जो खुद को झुठलाता हैं,
चंद पल की रौशनी के बाद ,
अंधेरों से घिर जाता है ।

उम्मीद के टूटते ही ,
वो खुद बिखर जाती हैं ,
हर किसी को अपना मान ,
सब से दिल लगाती है ।

वो ख्वाइशों से निकल कर ,
जब आजमाइशों से गुजरती है ,
खुद के नफ़रत से भी ,
वो इश्क़ करने लगती है ।

चंद पल में हमसफर बनते ,
अगले ही पल रास्ते बदल जाते हैं ,
छोड़ कर मुसाफिर जब उसे ,
किसी और रास्ते निकल जाते हैं ।

दिल लगाने ही किसी दिल से ,
दिल साथ छोड़ जाता है ,
इश्क़ शिद्दत से निभा कर भी ,
उसे सुकून कहां मिल पाता है ।

बन कर मुसाफ़िर सा ,
अजनबी रास्तों पर भाग रही है ,
वो आज भी खुद सा इश्क़,
हर इश्क़ में तलाश रही हैं ।।

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