माना की वक्त नहीं पास तुम्हारे ,
ना ही वक्त बैठा है साथ तुम्हारे ,
फिर भी थोड़ा तुम साथ चलो ,
चलो कुछ बात करो ।
जिंदगी दौड़ी नहीं फिर भी थकान हैं ,
हलचल के बाद भी सब सुनसान है ,
फिर भी थोड़ा तुम दौड़ पड़ो ,
चलो कुछ बात करो ।
बारिश को आ जाने दो ,
जी भर कर भीग आने दो ,
अब और उलझन में ना फसो ,
चलो कुछ बात करो ।
उलझी हुई पहेली को अब सुझाते हैं ,
अल्फाज़ से चलो मिल कर आते हैं ,
बस तुम पीछे ना मुड़ो ,
चलो कुछ बात करो ।
रात तो ऐसे ही रुक जाने को ,
चांद को बादलों में छिप जाने दो ,
बस तुम ऐसे ही रहो ,
चलो अब बस तुम कहो ।
सुनो ...चलो कुछ बात करो ।।
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