Sunday, October 13, 2019

ग़ुस्सा

पहली दफ़ा तुमसे जब मिला था ,
चेहरा टमाटर हो चला था ,
तुम देख जिसे खिलखिलाई थी ,
उस रोज़ जब मिलने आई थी ।

ना मालूम था पता घर का ,
ना दिल का कोई ठिकाना था ,
थी तुम तब भी ख़ामोश ,
जब रास्ता अनजाना था ।

खोने के डर से ,
तेरे रास्तों पर चलने लगे ,
बेवजह उन रास्तों पर भी ,
तुम हमसे उलझने लगे ।

सोचा छोड़ कर बीच रास्ते ,
अपना पता ढूँढ लाते है ,
इन अनजान रास्तों पर ,
अजनबी बन जातें है ।

जाने लगे क़दम जब अलग रास्तों पर ,
पहली दफ़ा वो लड़खड़ाये थे ,
लौट आये फिर उन्ही रास्तों पर ,
जहाँ छोड़ उन्हें आये थे ।

पैरों के निशा उन रास्तों पर ,
एक क़दम भी ना बढ़े थे ,
वो थोड़े मायूसी से ,
एक कोने में जा पड़े थे ।

देख मुझे फिर से वो सताने लगे ,
बेवजह ही अनजान रास्तों पर जाने लगे ।

मिल ही गया पता मंज़िल का मुझे ,
तेरे दिल तक ही तो था जाना ,
लगने लगे थे रास्ते पहचाने से ,
जिन रास्तों पर था तेरा ठिकाना ।

क्यूँ टमाटर हो चला चहेरा मेरा ,
इस बार दिल मुस्कुराया था ,
धड़कनो में मौजूदगी उसकी ,
अब जा कर सब समझ आया था ।

ग़ुस्से से भी करते है मोहब्बत ,
मोहब्बत ने बतलाया था ,
फिर सताने जब मुझे ,
मेरे पास वो आया था ।।

No comments: