Friday, October 18, 2019

मेहंदी

तेरे नाम की मेहंदी ,
हाथो पर सजाई थी ,
साज सँवर कर चूड़े संग ,
खिलने को वो आई थी ।

मोहब्बत सा गाढ़ा रंग उसका ,
वक़्त के साथ खिल रहा था ,
निगाहे उनसे और दिल उससे ,
जब मिल रहा था ।

धड़कनो के शोर को छिपा रही थी ,
माँग में सिंदूर जब लगा रही थी ,
देखा था चाँद के बाद जिसे ,
क्यूँ आज नज़र नहीं आया ।

थामा था हाथ अब जिसका ,
कल क्यूँ उससे ये मेहंदी अनजान थी ,
तुझे इससे मोहब्बत ,
और तू उसकी जान थी ।

चंद लम्हों में उम्र भर का साथ ,
कैसे छूट जाता है ,
फीका पड़ने से पहले रंग मेहंदी का ,
मोहब्बत बदल जाता है ।


मेहंदी बिना बोले सब कह जाती है ,
खिलने पर जब वो आती है ,
ख़ुशबू में होती जिसके मोहब्बत ,
गर नहीं .. तो फीकी पड़ जाती है ।

मेहंदी हर दफ़ा सच्ची हो ,
ये ज़रूरी नहीं ,
खिलना हर दफ़ा उसका सिर्फ़ “तेरे लिये” ,
उसकी मजबूरी नहीं ।।

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