Saturday, July 20, 2019

अधूरी दास्ताँ

डरने को किसने कहा ,
जो इतना ग़म दिखा रहे हो ,
मोहब्बत थी मुझे भी तुमसे ,
ये क्यू नहीं बता रहे हो ।

जितना जता रहे आज दर्द ए दिल ,
कल गर थोड़ा भी निभा लिया होता ,
ना होती ये दूरियाँ ,ना होता दर्द ,
हम आज भी मुस्कुरा रहे होते ,
और शायद उसकी वजह तुम होते ।

किन राहों पर कर रहे इंतज़ार ,
ज़रा हमें भी बताओ ,
क्यूँकि मैं आज भी .. गुज़रती हु उन राहों से ,
एक दफ़ा हमारी राहों पर आओ  ।

हाँ मैं आज भी खाई क़समें निभा रही हु ,
बेहद मुस्कुरा रही हु ,
बस बदला है , तो वो तेरी अधूरी मौजदगी ,
जिसे मैं छिपा रही हु ।

बड़ा ख़ुशनसीब होता दिल मेरा ,
गर जो तू मुझे समझ पाया होता ,
मंज़िल भी मिल जाती मोहब्बत की ,
गर तूने साथ निभाया होता ।

क्यूँकि मेरी पहली , मेरी आख़िरी ,
मोहब्बत तुम हो ,
कैसे तुम्हें बताऊँ ,
मेरी धड़कनो को कैसे तुम्हें सुनाऊँ ।

इतना वक़्त क्यूँ लगा रहे ,
क्यूँ नहीं उन रास्तों पर लौट आ रहे ,
क्यूँ इस दिल को तड़पा रहे ,
क्यूँ नहीं एक दूजे के हो जा रहे ।

तेरे इंतज़ार में और कितना इंतज़ार होगा ,
ना जाने कब फिर तुझसे प्यार होगा ,
हो वक़्त गर , उन राहों पर लौट आना,
एक दफ़ा फिर मेरे हो जाना ।।

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