Sunday, July 21, 2019

ख़्वाबों वाली मोहब्बत

कही हवा का शोर ,
कही दिलो का ज़ोर ,
उल्फ़त में उलझी ज़िंदगी ,
फैली चारों ओर ।

हर दफ़ा वाली मोहब्बत से ,
थोड़ी अलग बात थी ,
ना उलझे थे एहसास , ना जज़्बात ,
ना वो मेरे पास थी ।

इस दफ़ा उसकी मौजूदगी ,
बेहद ख़ास थी ,
अजब सी अदा और दीवानगी ,
जिसके आस पास थी ।

सिलसिला बिना निगाहों के हलचल के ,
धड़कनो को बढ़ा रहा था ,
तेरे लौट जाने का दर्द ,
अब सता रहा था ।

पड़े ख़ामोश अब तक जज़्बात ,
कुछ कहने को आ रहे थे ,
कम थी क्या क़ातिलाना मासूमियत ,
जिससे वो कहर ढा रहे थे ।

बस जो चले गये वो ,
मेरे होश में आते ही ,
क्यू आ जाते है लौट कर ,
मेरे ख़्वाबों  में जाते ही ।।

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