कुछ खत्म हुए कहानियां की शुरुआत हो तुम ,
अधूरे उलझे और उजड़े जज्बातों की सौगात हो तुम ,
हो बेशक बेखबर कल के सुनहरे मौसम से ,
आज शाम के आंधी के बाद की बरसात हो तुम l
हो तुम अंजान बेशक आज मुझसे ,
पर खुद से तो हर रोज अंजान हो ,
पहचानना मुश्किल है नहीं तुमको ,
पर तुम खुद लिए हो अपनी ,
अधूरी पहचान हो l
सपनों में जीने की आदत लिए ,
नींद से बेहद दूर हो तुम ,
ख्वाबों में सजाए उम्मीदों की ,
पोटली के संग ... मजबूर हो तुम ।
सिर्फ दिल ही नहीं धड़कन भी अब ,
धड़कना छोड़ने लगे थे ,
जिस रोज बिखरते ख्वाबों से ,
तुम मुंह फेरने लगे थे l
तुम पल को चुरा लो कुछ पल के लिए ,
ये पल हर पल मुमकिन नहीं ,
जज्बातों में उलझी तुम हो खुद ,
कोई और निकाले बेवजह ... ये मुमकिन नहीं ।
आइना है गर मौजूद सामने ,
एक दफा निहार आओ ,
श्रंगार जो है अधूरा अब तक ,
लाकर होठों पर हसीं और आंखों में चमक ,
उसे पूरा कर जाओ ।
जाओ बेशक लौट कर जहा जाना है ,
बेवजह ही नहीं खुद को अब सताना है ,
है लिखी खुशिया जिंदगी में गर ,
तो मुस्कुराओ ... मुस्कुराओ !!
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