हाथ थामा था उस रोज ,
छोड़ने के लिए नहीं ,
कुछ पल में ही ,
रिश्ता तोड़ने के लिए नहीं ।
माना की हद से बेहद ,
गुजर रहे थे हम ,
अल्फाजों में उलझ कर ,
कुछ बहक रहे थे हम ।
आंखों में थे अनगिनत सवाल ,
और तुम जवाब दिए जा रहे थे ,
हम भी उन्हें पढ़ कर ,
और सवाल किए जा रहे थे ।
था यकीनन वो लम्हा सबसे खूबसूरत ,
गुजरते रात के बाद का चमकता सूरज ,
फिर भी हम चांद तारों में थे उलझे ,
हमारे जज़्बात कहा थे अब सुलझे ।
पर वो लम्हा आखिरी होगा ,
ऐसा कभी सोचा ना था ,
तेरी मौजूदगी को तरस कर ,
पहले कभी खुद को .. ऐसे कोसा ना था ।
भरने को आए थे ज़ख्म ,
और घाव दे गए ,
अंजाने में ही सही ,
हम गुनाह कर गए ।
पर अब भी कुछ कहना है ,
तेरी हसी ही तेरा गहना है ,
आंखो में है नूर गजब का ,
देखते जिनमें हमें रहना है ।
लौट आओ एक आखिरी दफा ,
अभी बहुत कुछ कहना है ।।
No comments:
Post a Comment