Tuesday, March 23, 2021

एकतरफा


यकीनन पहली दफा तो ,
ये मुलाकात ना थी ,
कुछ सच्ची कुछ झूठी ,
जिसमे बात ना थी ।

था तो बस कुछ वक्त ,
और अनगिनत सवाल ,
जो अधूरा ही रह गया ,
जिस पल वो ... खामोशी से कुछ कह गया ।

मैंने सुना भी सिद्दत से उसे ,
और सच भी बयां हो गया ,
जो पहली दफा में ही ना जाने कैसे ,
अजनबी ना रह गया ।

क्यों जिद है उसको अब हंसाने की ,
खुशियां झोली में उसके ... अनगिनत दे आने की ,
हैं तो बहुत "अपने" उसके जो उसे हंसाते है ,
ना जाने क्यों फिर भी हम "खुश" रहने की फरियाद लगाते है ।

अक्सर छोड़ कर अधूरे में ,
रात के अंधेरे में ,
चांद तारों के संग .. वो छोड़ जाते है ,
बिन कुछ कहे .. मुंह मोड़ जाते है ।

माना की हु नहीं कोई अपना ,
और गैर सा तुम बनाते हो ,
अधूरे में ना जाने क्यों छोड़ ,
जब अक्सर चले जाते हो ।

कहना था कुछ तुमसे ,
पर शब्द नहीं है ,
उलझ रहा मैं एहसासों के जाल में,
शायद अब सच यही है ।

गर है तो ऐसा क्यों है ,
है तो आखिर वो "अजनबी" है !!

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