Saturday, March 27, 2021

इत्तेफाक

उस रोज बजी दरवाजे की घंटी ,

सब बदलने वाला था ,

उसकी पहली झलक के बाद ,

दिल मचलने वाला था ।


वो बातें लंबी होती गई ,

और वक्त छोटा पड़ गया ,

बड़ी मुश्किल से टूटा सफर ,

जब कोई और उसे मिल गया ।


पहली ही मुलाकात में ,

वो हमें सब कुछ बता गए ,

कुछ वक्त भी मांगा उन्होंने .. कभी कभी ,

और हम झुठला गए ।


कैसा है ये सफरनामा ,

क्या है इसका मुकाम ,

जो भी बीता वक्त साथ में ,

यकीनन खूबसूरत बहुत है वो "इंसान"। 


बिन कुछ कहे उसके ,

हम सब जान गए ,

पहली ही मुलाकात में ,

हम पहचान गए ।


पर कर बैठे गलती उसे खो देने की ,

एक रोज अंजाने में ,

शायद था सफर इतना सा ही ,

हमारे जिंदा रह जाने में ।


रंग भी एक आंखो का ,

ढंग भी एक बातों का ,

आखिर कैसा ये इतेफाक है ,

अजनबी हो कर भी लगता ख़ास है ।


कैसे उसको मैं इतना जान गया ,

कैसे इतना पहचान गया ,

जवाब अब भी अधूरा है ,

शायद वक्त करे जिसे पूरा है ।।

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