Sunday, March 28, 2021

अजनबी


मेरे शब्द खाली पड़ गए थे ,
उस रोज जब तुम सामने आ खड़े थे ,
था यकीनन एहसास बहुत खूबसूरत ,
जब आंखों से ही हम सब पढ़ रहे थे ।

पहली दफा लगा था डर मुझे ,
शब्दों को सजाने में ,
थी मुश्किल तेरी खुबसूरती को ,
अल्फाजों में बताने में ।

मैं खो गया था चंद लम्हों के लिए,
और गुनाह कर बैठा ,
माना था इशारा खुदा का जिसे ,
उसे जुदा कर बैठा ।

उसकी आंखों का रंग ,
या हो गालों पर तिल ,
खूबसूरती हर अदा में उसके झलकती होगी,
शायद लगती होगी वो और भी  खूबसूरत ,
जब पैरों में पायल खनकती होगी ।

मैंने जैसा मांगा था खुदा से इनायत ,
वो जानशीन हुबहू वैसी है ,
लगा जरूर वक्त मुझे ये बताने में ,
आखिर ये मजबूरियां , दूरियां कैसी हैं ।

सूरत से खूबसूरत सीरत जिसकी ,
और क्या हमें चाहिए ,
एक दफा हो सके तो ,
लौट आइए ।

अजनबी ही सही .. 
उनकी मौजूदगी काफी है ।।

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