क्यों बहाना आसूं ,
जब रक्त बह रहा है ,
क्यों ठहेरना एक पल में ,
जब वक्त चल रहा है ।
हर सुबह के बाद शाम भी है ,
खुशियों के कीमत का दाम भी है ,
है गम बेचने वाले भी मौजूद ,
क्योंकि उसके खरीदार भी है ।
थाम लो एक दफा वक्त को कैद में ,
शायद पल भी ठहर जाए ,
खूबसूरत हो लम्हा तो अच्छा ,
वरना शायद वो पल ही वजह बन जाए ।
उलझन लिए नज़रे चुरा रहे है ,
जान कर भी अजनबी बने जा रहे है ,
गर हो उम्मीद कायम खुद में खो जाने की ,
तो गुमनामी से क्यों घबरा रहे है ।
वक्त के साथ सब धूल जायेगा ,
यादों में भी जिक्र ना हो पायेगा ,
बेहतर है अभी मुस्कुरा लेते है ,
कुछ पल ही खुद में खो जाते है ।
No comments:
Post a Comment