Wednesday, March 24, 2021

खता


वो शाम आई ही क्यों ,
जब अंधेरे में उसे गुम होना था ,
उसे कुछ हद तक पहचान ही क्यों ,
जब कुछ पल में ही अंजान होना था ।

चंद रोज और अनगिनत लम्हें ,
हम बेहद बदल रहे थे ,
लगा नहीं हम , हम थे ,
शायद अब संभल रहे थे ।

नज़र हटाना तस्वीर से जिसके ,
मुश्किल हो चला था ,
खुशियों से संवारने की थी जिद्द जिसे ,
वो खफा कर चला था ।

बिछड़ने का गम नहीं ,
क्योंकि था वो कोई हमदम नहीं ,
गम हैं उसके बेवजह रूठ जाने का ,
अंजाने में ही सही .. दिल दुखाने का ।

अनगिनत सवाल अब भी ,
अपने जवाब तलाश रहे है ,
कुछ तो हुई है यकीनन खता ,
वो बिन कुछ कहे दूर जा रहे हैं ।

खैर,

कोई अपना तो ऐसे जाता नहीं ,
जैसे तुम गए हो ,
एक झटके में ही सब तोड़ कर ,
बेवजह मुंह मोड़ गए हो ।।

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