वहम भी मेरा और गुनाह भी ,
जो उन्हें बेवजह ही वजह मान बैठे थे ,
अनगिनत अनदेखी भरे इशारों को ,
हम देख कर भी झुठला रहे थे ।
ये जिद्द थी मेरी या मेरा पागलपन ,
या कोई बेहद अलग ही एहसास था ,
हर दफा लौटता हु जब भी गलियों से उसके ,
लगता हैं रास्ता और मंजिल यहीं कही आस पास था ।
है यकीन हमें पूरा ,
दुआओं में हमारा जिक्र भी नहीं होता होगा ,
गलती से ही सही ,
फिक्र भी नहीं होता होगा ।
पर कितना मुश्किल होता है ,
एकतरफा एहसास से निकल पाना ,
वो भी तब ,
जब कोई अजनबी हो आप का ठिकाना ।
मैंने की हर कोशिश ,
और करता जा रहा हू ,
तेरे कहे हिसाब ,
खुद को "गुनेहगार" खुद से बना रहा हू ।
पर नहीं होता इतना आसान ,
किसी को भूल जाना ,
वो भी तब ,
जब बेवजह हो उसका जिंदगी में आना ।
काश मुझे मेरी वजह मिल जाय ,
बीते एकतरफा लम्हों की शाम ढल जाए ,
जिंदगी जो बची है मेरे हिस्से में ,
वो सुकून से हम जी पाए l
वहम है जो मेरा ,
वो शायद एक बार फिर टूट जाएगा ,
शायद ढूंढते तुम जैसा कोई ,
फिर मुझे गुनेहगार मिल जाएगा ।
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उम्दा
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