चंद रातें ही गुजरी थी अभी ,
और अनगिनत मुलाकाते हो चली थी ,
अजनबी तो तब भी थी तुम और आज भी ,
बस एक कहानी चल पड़ी थी ।
तेरी मासूमियत और शिद्दत से देखती निगाहें ,
मानों ख़्वाब हर दफा सच सा लगता था,
ज़िक्र ना हो जिस ख़्वाब में तुम्हारा ,
वो ख़्वाब गुनाह सा लगता था ।
मेरी कल्पना से भी परे ,
और दीपक की रोशनी के तले ,
वो सर्द सा एहसास हो तुम ,
जब जब ख्वाबों में ,
होती मेरे बेहद पास हो तुम ।
वहां ना कोई गैर होता ,
बेवजह ही नहीं कोई बैर होता ,
ना ही होती है तेरी बेवफाई ,
ना ही मांगती जिंदगी मुझसे कोई सफाई ।
पहली दफा जो थामा था हाथ तुमने ,
और मैं किन्ही रास्तों में खो गया था ,
याद है ना वो रात और उसकी बातें ,
जब मैं ख़्वाब सुनाते सो गया था ।
वरना कैसे कोई पहले नींद चुराता है ,
ख्वाबों में आकर सुकून दे जाता है ,
होती हो बिलकुल मेरे कल्पना सी ,
होश में आते ही जो ख़्वाब तोड़ जाता है ।
कैसे कोई पल भर में अपना ,
पल भर में अजनबी बन जाता है ,
कैसे कोई देकर दर्द अंजाने गुनाहों का ,
चैन से सो जाता है ।
ख़्वाब में ही बेहतर है मौजूदगी तेरी ,
हर सुबह जो टूट जाता है ,
अनगिनत लिए ज़ख्म गुनाहों के ,
हर रात फिर ये दिल गुनेहगार बन जाता हैं ।
1 comment:
Super awesome
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