Saturday, May 22, 2021

जज़्बात

जज्बातों में उलझ कर ,

सुलझ कहां कोई पाता है ,

मासूमियत का मुखौटा पहने ,

अक्सर रास्तों पर ,

कोई अजनबी मिल जाता है ।


होती हैं कहानियां सच्ची जिसकी ,

जितना वो बतलाता है ,

भूलने पर रास्तों को ,

अपनी ही मंजिल झुठलाता है ।


इश्क हो ना हो पहली नजर में ,

पर शक्स बंध जाता है ,

इश्क़ का भूखा ,

जिस्म कहां देख पाता है ।


हर कहानी सच्ची उसकी ,

उसके ही होते किरदार ,

वक्त आने पर बनता कभी वजीर ,

तो कभी हो जाता घोड़े पर सवार ।


दिल ने दिमाग पर कब्जा ,

कुछ इस कदर है कर लिया ,

वो दिए जा रहा जख्म जो ,

उसे मरहम समझ लिया ।


इश्क़ का फितूर भी ,

क्या रंग दिखाता है ,

बेवफ़ा से भी ,

वफ़ा की उम्मीद लगाता हैं ।