जज्बातों में उलझ कर ,
सुलझ कहां कोई पाता है ,
मासूमियत का मुखौटा पहने ,
अक्सर रास्तों पर ,
कोई अजनबी मिल जाता है ।
होती हैं कहानियां सच्ची जिसकी ,
जितना वो बतलाता है ,
भूलने पर रास्तों को ,
अपनी ही मंजिल झुठलाता है ।
इश्क हो ना हो पहली नजर में ,
पर शक्स बंध जाता है ,
इश्क़ का भूखा ,
जिस्म कहां देख पाता है ।
हर कहानी सच्ची उसकी ,
उसके ही होते किरदार ,
वक्त आने पर बनता कभी वजीर ,
तो कभी हो जाता घोड़े पर सवार ।
दिल ने दिमाग पर कब्जा ,
कुछ इस कदर है कर लिया ,
वो दिए जा रहा जख्म जो ,
उसे मरहम समझ लिया ।
इश्क़ का फितूर भी ,
क्या रंग दिखाता है ,
बेवफ़ा से भी ,
वफ़ा की उम्मीद लगाता हैं ।
1 comment:
Good once
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