गुनहगार
अगर सब जीत जायेंगे मोहब्बत में ,
तो हारेगा कौन ?
मुकम्मल जो होने लगी हर ख्वाइश ,
तो खुदा को पुकारेगा कौन ?
माना की इश्क मेरा ,
तुझसे तो पूरा था ,
रह तो गई थी तेरी मोहब्बत ,
जिसमें इश्क अधूरा था ।
एक वक्त वो भी ,
क्या खूब हुआ करता था ,
चंद रोज़ ही सही ,
तू दुआओं में रहा करता था ।
तेरी नाराजगी हर दफा ,
बेहद जायज़ थी ,
शायद की ही नहीं .. हमने मोहब्बत ,
जो तेरे लायक थी ।
आज भी हर शाम तेरे होने का ,
एहसास सताता हैं ,
गर जाती हैं निगाह कभी रातों में ,
आसमां की ओर ,
आंखो से हंजु बहने लग जाता है ।
मेरी क़िस्मत मैं गर नहीं तुम ,
तो जिंदगी में क्यों आई ,
जी रहा दिल ,
लिए दर्द , जिल्लत और जुल्म ,
जो थी तुम मेरे हिस्से छोड़ आई ।
माना की गुनहगार हैं हम ,
और तुम पर जुल्म का इल्ज़ाम नहीं ,
पूछना कभी अपने दिल से ,
क्या धड़कनों पर मेरा नाम नहीं ।
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