कैसे खुद आज़ाद घूम रहे हो ,
छोड़ कर साथ मेरा ,
किसी गैर का माथा चूम रहे हो ।
मैं कहती थी इतना भी प्यार मत जताओ ,
इस कदर खुद में ना उलझाओ ,
पर तुम इश्क़ में दिवाना किए जा रहे थे ,
और हम तेरी ओर खींचे आ रहे थे ।
उस रोज़ जब रख कर कांधे पर सिर ,
तुम मेरी उंगलियां टटोले जा रहे थे ,
भीग रहा था दुपट्टा मेरा ,
आंसू जिनपर .. तुम बहा रहे थे ।
क्या फरेब भी खूब खेला फरेबी ,
मैं तो बर्बाद हो गई ,
लिए उम्मीदों की पोटली ,
खुलेआम नीलाम हो गई ।
मांग में लगा सिंदूर आज भी ,
और कल भी इन्हें ऐसे ही सजाऊंगी,
गुनाह किया है गर मैंने ,
तो ताउम्र गुनेहगार रह जाऊंगी ।
कल जो निकले जिस्म से मेरे ,
रूह आज़ाद होने को ,
सेज पर कुछ ऐसे मुझे सजाना ,
हो मांग में सिंदूर ,
और हाथों पर मेहंदी लगाना ।
बेवफाई जो की है उसने साथ मेरे ,
मैं नहीं दोहराऊंगी ,
अधुरे इश्क़ के साथ ही सही ,
मैं मोहब्बत निभाऊंगी ।
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