Thursday, December 23, 2021

तेरी गलियां

मुसाफ़िर के सफ़र में ,
उसका हमसफ़र उसे मिला था ,
पहली दफा उसकी गलियों से ,
जब वो गुजर रहा था ।

ना कोई ख्वाइश थी मुसाफ़िर की ,
ना वो कोई फरमाइश लेकर आई थी ,
जब दूसरी दफा इन्हीं गलियों में ,
फिरसे वो टकराई थी ।

सिलसिला मुलाकातों का ,
फिर से शुरू हो गया ,
पहली दफा किन्हीं रास्तों पर ,
जाकर मुसाफ़िर ठहर गया ।

ना कोई और रास्ता ,
ना गलियां अब दिखाई देती हैं ,
मुसाफ़िर को ठहर जाने की ,
वो हर रोज़ दुहाई देती हैं ।

इश्क़ भी मुकम्मल हुआ दोनों का ,
गुजरते दौर के साथ ,
मिल गई मंजिल भी उसे ,
उसकी गलियों से गुजरने के बाद ।

आखिर चलते चलते मुसाफ़िर ,
किसी एक रास्ते पर ठहर गया ,
उसकी गलियों से गुजरते गुजरते ,
उसके दिल में उतर गया ।

अब तो उसकी मंजिल भी एक ,
मोहबब्त भी एक हैं ,
क्या फर्क पड़ता गर ,
गली के आगे रास्ते अनेक हैं ।

ठहर गया मुसाफ़िर ,
ख़त्म उसकी तलाश हुई ,
जिस रोज़ इन गलियों में ,
जिंदगी से मुलाकात हुई ।।

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