रूह में जीने वाले ,
हुस्न कहां देख पाते हैं ,
दो घड़ी की चाहत नहीं ,
ताउम्र साथ निभाते हैं ।
वक्त के साथ एहसास और इजहार ,
दोनों ही बदल जाते हैं ,
जब कभी निभाने वाले ,
उसे शिद्दत से निभाते हैं ।
जिंदगी भर वो दिल ,
किसी एक से लगाते हैं ,
बेहद ही सादगी से ,
वो उस दिल में उतर जाते हैं ।
जिंदगी भर का जिसे ,
आखरी सच वो बताते हैं ,
छोड़ कर जाने पर जिंदगी के ,
वो उसे छोड़ पाते हैं ।
क्या कमाल की मोहब्बत ,
वो दुनिया को सिखाते हैं ,
लगता हैं जैसे कोई सच नहीं ,
सिर्फ़ ख़्वाब में ही आते हैं ।
हुस्न को समझने वाले नहीं ,
हम तो रूह में बसने वालों में आते हैं ,
भला हम क्या जाने ,
हुस्न को समझने वाले क्या समझ पाते हैं ।।
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