शाम के इस अधेरे से ,
अब डर लगने लगा हैं ,
ना जाने क्यों आसमां ,
अब बादलों से घिरने लगा हैं ।
हर सच और विश्वास ,
एक झूठ से बिखरने लगे हैं ,
हमें छोड़ कर जबसे ,
वो किसी गैर से मिलने लगे हैं ।
ना वास्ता मेरी मोहबब्त का ,
ना मेरे शिद्दत भरे एहसास का ,
ना ही किसी रकीब की खातिर ,
टूटे किसी अटूट विश्वास का ।
बना कर रखा था जिसको ,
मैंने अपना आखिरी आस ,
देखो मज़ाक जिंदगी का ,
उसे आ गया कोई और रास ।
छोड़ कर चला गया मुसाफ़िर ,
अंजना किसी राहों में ,
जा कर होगा पड़ा ,
किसी और की बाहों में ।
मैं फिर भी खोल कर बाहें ,
बेशर्मी अपनी दिखाऊंगा ,
रकीब का जूठा ,
अपने होठों से लगाऊंगा ।।
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