बिना कहे जान गया था ,
तो इस अधूरे सच से ,
कैसे अंजान रह गया था ।
सच और झूठ के बीच ,
आज झूठ पहले आया था ,
उसके हर एक बदले अंदाज में ,
जिसे मैं देख पाया था ।
ना वो कशिश थी रोज़ सी ,
ना रोज़ जैसा मिजाज़ था ,
पहुंचा तो बेशक मुझतक वो ,
पर कुछ बदला वो आज था ।
वक्त का पहिया घूम कर ,
आज मेरे हिस्से सब ला रहा ,
मैंने जैसे सताया था उसे ,
आज मुझे वो सता रहा ।
तोड़ कर भरोसा उसने ,
मुझे आज़ाद कर दिया ,
शुक्रिया बहुत उसका ,
जो उसने शुक्रिया कह दिया ।
कभी किसी रोज़ कोई ,
सिर्फ़ रूह में बसने आयेगा ,
मुझसे भी बेहतर जो ,
मुझसे इश्क़ निभायेगा ।
इंतजार में बस उसके ,
हम ऐसे ही इश्क़ लुटाएंगे ,
होंगे कभी खुद बर्बाद ,
कभी किसी और को कर जाएंगे ।।
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