Monday, December 6, 2021

शायद

आज फुर्सत से कुछ पल ,
वो मेरे सामने बैठा था ,
खामोश कर के लब अपने ,
आंखो से कुछ कह रहा था ।

देख कर रंग झुमकों का ,
सब याद ताज़ा हो गए ,
मानो जैसे लौट कर हम ,
फिर से उन रास्तों पर लौट गए ।

माथे पर बिंदी उसके ,
क्या खूब जचती हैं ,
हर दफा जब किसी एक रंग से ,
वो अक्सर ऐसे ही सजती हैं ।

दिल कुछ और दिमाग कुछ और ,
उसकी कहानी बता रहें हैं ,
नज़रे फेर कर हमसे ना जाने ,
वो क्या क्या छिपा रहे हैं ।

फेर कर उंगलियां लटों पर अपने ,
वो अपने चहरे से जुल्फ हटा रही थी ,
गालों पर बसे उस मुस्कुराहट को ,
खुल कर दिखा रही थी ।

और भी जज़्बात जुड़े हैं तुमसे ,
वक्त आने पर बताएंगे ,
लिख दिया जो लिखना था ,
बाकी दिल की धड़कनों से सुनाएंगे ।

हैं फासल जो दूर इतना ,
वक्त के साथ मिट जाएगा ,
थाम कर हाथ किसी रोज़ ,
चंद कदम वो चलने को आयेगा ।।

... शायद !!

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