Wednesday, January 26, 2022

सफ़र


आज सुबह के सवेरे से ,
रात के गुजरे अंधेरे से ,
सब बदलने वाला था ,
देश की खातिर मैं जंग लड़ने वाला था ।

आज जब पहली बार ,
घर की चौखट से ,
मां की रक्षा के लिए कदम बढ़ाए थे ,
जज्बातों में उलझकर थोड़ा लड़खड़ाए थे ।

मां जो अपनी आखों के ,
आंसू छिपा रही थी ,
पापा की फेरती निगाहें ,
हाले दिल सुना रहीं थी ।

डर सा लग रहा था ,
उनको छोड़ जाने पर ,
क्या होगा इनका ,
मेरे नहीं लौट कर आने पर ।

और भी थे अनगिनत सवाल ,
जो मेरे जहन में आ रहे थे ,
हौसला और मुस्कुराहट से ,
जिनको हम छिपा रहे थे ।

जब मां ने चूमा माथा मेरा ,
मानो स्वर्ग में जा चुका था ,
मौजूद हर शख्स वहा ,
मेरे लंबे उम्र की दुआ कर रहा था ।

पता नहीं फिर इन रास्तों पर ,
कभी लौट कर आऊंगा क्या ,
मां के गोद में फिर कभी ,
सिर रख सो पाऊंगा क्या ?

याद तुम भी आओगी मुझे ,
और तुम्हारी वो बाते ,
चुपके चुपके मिलने वाली ,
वो खूबसूरत रातें ।

अरे पगली ,
तेरा जिक्र इस लिए नहीं किया ,
तू मेरी बहन नहीं ,
तू मेरी जान है ,
कहती है ना ,
हम दोनों दो जींद एक जान है ।

चल पड़ा मैं अनंत सफर में ,
देश का हो जाने के लिए ,
मां के मिट्टी का ,
कर्ज चुकाने के लिए ।।

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