इश्क़ में डूब कर हमने ,
बहुत मोहब्बत कर ली है ,
अब तैर कर इस समंदर में ,
इसके दरिया पे जाना है ।
बहुत सहा है इस दिल ने ,
कई बार खुद को मनाया हैं ,
सीख कर तैरना जिसने खुद से ,
खुद को डूबने से बचाया हैं।
लहरों के ज़ख्म आज भी ,
दिल का दर्द बढ़ाते हैं ,
दरिया के आने के इंतजार में ,
फिर डूबने लग जाते हैं ।
इश्क़ के इस समंदर में ,
दरिया महज एक ख्वाब हैं ,
शायद दिल को ही नहीं मंजूरी ,
ख़त्म हो ये सिलसिला आज है ।
और भी बहुत से सीप ,
अब भी मोतियां बचाए बैठे हैं ,
चीर कर सीना जिनका ,
जिनसे हम मोतिया चुराते रहते हैं ।
डूब लो समंदर में थोड़ा और ,
क्योंकि तैरना तो आता हैं ,
क्या करे इस कमबख्त दिल का ,
हर रोज़ जिसे कोई नया भा जाता है ।
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