Saturday, January 15, 2022

गैर

मैंने बदल कर नज़रिया इश्क़ का ,
अपने इश्क़ को बदनाम किया हैं ,
तोड़ कर दिल जबसे किसी अपने का ,
किसी गैर के नाम किया है ।

ना पता मेरे मंजिल का मुझे ,
ना ठहरने का कोई ठिकाना हैं ,
मालूम नहीं क्यों छोड़ आए वो गलियां ,
जिनमें गुजरा एक जमाना है ।

सब कुछ तो ठीक था कल तक ,
आज ना जाने कैसे सब बर्बाद हो गया ,
सारे वादे कसमें तोड़ कर ,
चंद लम्हों में उससे मैं आज़ाद हो गया ।

जिंदगी सी लगने वाली मोहबब्त ,
मौत से बत्तर अब क्यों लग रही हैं ,
खामोश तो पहले से थे हम दोनों ,
फिर इतना शोर जिंदगी क्यों कर रही है ।

मैं तड़प रहा हर दिन हर रात ,
वो दिन आखिर आया ही क्यों था ,
पहली और आखिरी दफा मैंने ,
बेवजह उसे इतना सताया क्यों था ।

क्या सच में इश्क़ मुकम्मल नहीं होता ,
सच्चा इश्क़ निभाने पर ,
छोड़ कर चले जाते हैं अपने ,
किसी गैर के आ जाने पर ।

खैर ,

इश्क़ में हर रोज़ निकलते हैं ,
कई मुसाफ़िर किसी की तलाश में ,
कुछ हो जाते दफ्न कब्र में ,
कुछ रह जाते जिंदा किसी लाश में ।।

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