बस हम देखते रह जाते हैं ,
भला क्या ही देखे और ,
जब झुमको पे रुक जाते हैं ।
यकीनन बाली भी झुमके सी ,
उन्हें खूबसूरत बना रही होगी ,
सज कर कानों पे जो ,
अनगिनत दिलों को जला रही होगी ।
शांत , शालीन और सुंदर ,
श्रृंगार में और भला क्या होता हैं ,
बिना किसी हलचल के भी ,
जिसकी मौजूदगी से शोर होता है ।
बाली की खामोशी ,
क्या खूब शोर मचाती हैं ,
बिना हवा के झोंको के भी ,
दिल में बस जाती हैं ।
बस चुकी दिल में तस्वीर जिसकी ,
भला कैसे उसकी खूबसूरती नकारू ,
कोहिनूर कहूं उसे मैं ,
या फिर चांद कह कर पुकारू ।
हम भला इतने खुशनसीब कहां ,
जो वो कभी हमसे भी गुजर कर जायेंगे ,
कुछ पल आईने में निहारने के बाद ,
हमारी निगाहों के सामने ठहर जायेंगे ।।
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