Thursday, January 27, 2022

इश्क़ का दौर

जिस तरह मायूस दिल ,
खामोशी से सब कह रहा था ,
पहली दफा सी मोहब्बत से ,
आज फिर ये दिल गुजर रहा था ।

दर्द लेकर किसी गैर का ,
किसी अपने को सता रहा था ,
वफा के बदले मैं उससे ,
बेवफाई किए जा रहा था ।

खुशियों का वादा कर के ,
हर रोज़ उसे रुलाता हूं ,
पागल हूं शायद मैं ,
जो प्यार नहीं समझ पाता हूं ।

दर्द भरे जीवन में उसके ,
मरहम बन कर आया था ,
पर कहां उसके जख्मों को ,
मेरा इश्क भर पाया था ।

ख़्वाब सजा कर वो मेरे ,
दुनिया जिसे बताती हैं ,
हर रोज़ किसी किस्से से ,
खुद को उलझाती हैं ।

ना मैं रुका ना वो रुकी ,
फिर भी रुकने का डर सताता हैं ,
क्या सच में हर किसी का इश्क़ ,
इतना ही उलझाता हैं ।

मुश्किल है डगर जरूर ,
पर मुमकिन उसे बनाना हैं ,
हर देखते ख़्वाब को ,
सच कर जाना हैं ।

हैं उलझने तो क्या हुआ ,
इश्क़ तुमसे ही निभाएंगे ,
पहली नहीं तो क्या हुआ ,
आखिरी मोहब्बत जिसे बनाएंगे ।।

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