Sunday, January 9, 2022

क्या इश्क़ नहीं

ऐसा नहीं की इश्क़ नहीं मुझे तुमसे ,
पर अब इश्क़ करना ही नहीं हैं ,
एक और दफा तड़प तड़प कर ,
मुझे जिंदा रहते मरना ही नहीं है ।

आज तक इस दिल ने ,
बस ठोकर ही तो खाया है ,
बहुत जुल्म और जिल्लत सह कर ,
ये दिल संभल पाया है ।

इश्क़ के सौदागर कई गुजरे ,
तुमसे दिल लगाने से पहले ,
झूठा और फरेब इश्क़ ,
तुम्हारे जताने से पहले ।

मैं बिखर कर टुकड़ों में ,
जज़्बात दुनिया से छिपाता हूं ,
तेरे दिए हर दाग को ,
हर रोज़ मिटाता हूं ।

पर आंखे मेरी बड़ी जालिम हैं ,
वो कुछ छिपा नहीं पातीं ,
देख कर हर खूबसूरत इश्क़ को ,
बस बहने लग जाती ।

लगता है डर उसे ,
फिर से टूट जाने का ,
इश्क़ में सब लूटा कर ,
लावारिश हो जाने का ।

अब और नहीं इश्क़ करना ,
किसी गैर को अपना कहना ,
वक्त मेरे ज़ख्म भर जाएगा ,
जिस रोज़ मुझ जैसा कोई ,
मेरी जिंदगी में इश्क़ बन कर आयेगा ।।

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