Friday, January 21, 2022

झलक

आज लगा जैसे कोई ,
मेरी दुआ कबूल हो गई ,
या फिर अंजाने में उससे ,
ये अधूरी भूल हो गई ।

देख लिया उस शख्स को ,
जिसकी निगाहें ही देख पाते थे ,
मालूम नहीं रूह पढ़ने वालों से ,
वो चेहरा क्यों छिपाते थे ।

कितना सुकून और सादगी आंखो में ,
चेहरे पर क्या खूब नूर था ,
यकीनन वो किसी खुशनसीब का ,
मानो शायद कोहिनूर था ।

थम गई आंखे मेरी ,
और बस उसे निहारने लगा ,
चंद पल में खो ना दू दीदार ,
आंखो से दिल में तस्वीर उतारने लगा ।

अधूरे इश्क़ सा अधूरा दीदार भी ,
क्या खूब हमें सिखाता हैं ,
हर रोज़ उसके पूरी झलक के इंतजार में ,
अधूरी तस्वीर को ही वो पूरा बताता हैं ।

गर कभी निगाहों ने उसे पूरा देखा लिया ,
तो दिल को कैसे मैं मनाऊंगा ,
गालों पर डिंपल और तिल से ,
कैसे अपनी नज़रे हटाऊंगा ।

खैर दीदार तेरा अधूरा ही ,
अब मुझे बेहतर लगने लगा है ,
जबसे धड़कनों का शोर ,
तेरे अधूरे दीदार से बढ़ने लगा है ।।

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