Tuesday, August 10, 2021

पहचान

तुम जो खामोश रहती हो ,
अक्सर कुछ ना कहती हो ,
हर सुबह शाम खुद से ,
बेवजह लड़ती रहती हो ।

क्यों नहीं खुद से ,
खुद जैसी मोहब्बत करती हो ,
आंखो से कहती जो बातें ,
उन्हें होठों से कहती हो ।

खुशियों को तलासने में ,
गम से खुद को कितना भर चुकी हो ,
अधूरेपन से खुद को ,
अधुरा कर चुकी हो ।

क्या कल की कोशिश ,
आज नहीं कर सकते है ,
चंद लम्हों में ही ,
वो पल जी सकते हैं ।

काश की वो लौट आए ,
लौट कर फिरसे गुजरे वक्त सा ,
हो जिसे चाहत अनगिनत खुशियों की ,
बिन कह उन शब्द सा ।

हो सके तो लौटा दो ,
वो कल जो खूबसूरत था ,
जहां सिर्फ सच्चे एहसास के ,
नहीं कोई और मूरत था ।।

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