गर ना बहते आंखो से आंसू ,
उस अंधेरी रात में ,
अंजाने में हुए गुनाह की सजा ,
जो ना देते मिला करे हमें खाक में ।
शायद दिल में इश्क़ हमारे ,
अब तक जिंदा होता ,
ये दिल सिर्फ और सिर्फ ,
बस तेरा होता ।
रात में अंधेरे और सन्नाटे में ,
आंसू नहीं मेरे जज़्बात बह गए ,
जब तुम किसी बेगुनाह को ,
गुनेहगार कह गए ।
हां बेवफा हू मैं ,
क्योंकि अपनी धड़कन को छोड़ ,
तुम्हारे दिल की धडकन की सुनने लगा था ,
खुद से भी जादे तुझसे ,
अब मोहब्बत करने लगा था ।
खैर ... गैर बनाना तुमसे बेहतर ,
शायद ही किसी को आता होगा ,
हर दफा वफा देने वाले को ,
जब तू बेवफा बताता होगा ।
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