Thursday, August 19, 2021

और तुम

कुछ देर से लौटा था घर मैं ,
और कुछ देर से तुम जागे थे ,
कितने नाजुक से रिश्तों को ,
मजबूती से तुमने बांधे थे ।

मैं हर रोज़ कर के वादा ,
साथ निभाने का ,
हर शाम तोड़ जाता हू ,
हर दफा दस्तक दरवाज़े पर ,
जब बे वक्त दे आता हू ।

तुमने मांगी नहीं कोई ,
और खुशियां मुझसे ,
बस वक्त ही तो मांगा है ,
देखो ना मज़ाक जिंदगी का ,
बस वक्त ही तो आधा है ।

कल जब तुमसे मैं मिला ,
शायद कई अधूरे अंधेरे के बाद ,
अधुरा कुछ नहीं था हमारे दरमियां ,
सिवाए बिखरा मैं और जज़्बात ।

तुम्हारी फेरती उंगलियां ,
और एक नज़र से मुझे निहारना ,
कातिल निगाहें और मुस्कुराहट  ,
खुद को जिनसे संवारना ।

ये सब छूट सा गया था ,
शायद मीत मेरा रूठ सा गया था ,
पर अब और नहीं सताऊंगा  ,
हर दफा अब वक्त पर लौट आऊंगा ।

और तुम .. 
बस ऐसे ही रहना ,
मेरी बाहों में सुकून बन कर ,
जिंदगी भर की खुशियां ,
और मेरी जिंदगी बन कर ।।

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