Friday, August 6, 2021

बताना

हां मुझे तुमसे मोहब्बत है ,
क्या तुम्हें नहीं ,
बताना जरा सच सच ,
क्या ये सच नहीं ।

क्या ये सच नहीं ,
की तुम मेरे खुशियों की ताबीज़ हो ,
जिस्म से दूर होकर भी ,
रूह के सबसे करीब हो ।

रूह के करीब हो ,
पर क्या तुम मेरा नसीब हो ,
इस मोहब्बत को निभाने वाली ,
क्या तुम कोई रकीब हो ।

रकीब जानकर एहसासों के कंकड़ ,
जो दिल में चुभने को आते है ,
उन इश्क़ की गलियों से गुजरने पर ,
क्या तुम्हें मुझ जैसे ही सताते है ।

सताता हू मैं तुम्हें ,
या तुम मुझे सताती हो ,
मेरा होकर भी ,
अजनबी रह जाती हो ।

अजनबी बन कर भी ,
अपनी सी तो लगती हो ,
अक्सर जब अंजान रस्तों में ,
आ मुझसे मिलती हो। 

मिलोगी ना तुम उतनी ही शिद्द्दत से ,
जैसे मुझसे इश्क़ निभाती हो ,
अक्सर रातों में ,
मुझे उजालों से भर जाती हो ।।

1 comment:

Anonymous said...

Dear moon,

It's always so calming and relaxing whenever I hear your poetries.!