बात एक राज़ की है ,
तेरे मेरे साथ की है ,
कुछ बिखरे जज़्बात और ,
उलझन से भरे रात की है ।
ना कोई रिश्ता है तेरा मेरा ,
ना ही है उसका कोई नाम ,
फिर भी लगते नहीं अजनबी ,
मिलते है जब हम हर शाम ।
तुम कहती हो बात दिल की ,
हम दिल में जिन्हें बसाते है ,
हर रात के अंधेरे में ,
इश्क़ की लौ दिल में जलाते है ।
बुझते नहीं अरमां दिन के उजाले में ,
तेरा सिर्फ मेरा हो जाने में ,
पर कुछ तो अक्सर छूट जाता है ,
बेवजह जब हर सुबह वो रूठ जाता है ।
फिर आती है शाम ,
रात की हो जाने को ,
मेरे इस बेनाम रिश्ते को ,
शिद्दत से निभाने को ।
वो आज कल ख्वाबों में ,
कुछ जादे ही आने लगी है ,
शायद मुझ सा इश्क़ ,
अब वो भी निभाने लगी है ।
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