हम मिले थे बस किस्मत से ,
किस्मत की लकीरें मिटाने को ,
चंद रोज़ की जिंदगी को ,
ताउम्र निभाने को ।
पहली दफा हो या आखिरी ,
सब कुछ नया सा लगता था ,
जब बन कर मेरा साया ,
हर वक्त मेरे साथ तू चलता था ।
आई मुश्किल बहुत और मुसीबत भी ,
पर हाथ कभी हमनें छोड़ा नहीं ,
खाई कसम साथ निभाने की ,
आज तक मुंह जिससे मोड़ा नहीं ।
मांग मेरी सिंदूर से नहीं ,
तुम्हारे रक्त से भरी है ,
चले गए बिन कुछ कहे ,
आखिर क्या हड़बड़ी है ।
मेरा दिल , मेरे जज़्बात और मैं ,
आज भी तेरा ही हुए बैठे हैं ,
फर्क क्या पड़ता है ,
गर जिस्म वो छोड़ बैठे है ।
रूह में ही नहीं सिर्फ ,
मेरे हर हिस्से में तुम बसे हो ,
क्या बताऊं कैसे बताऊं ,
तुम सिर्फ मेरे हो चुके हो ।
मोहब्बत में हासिल करना नहीं ,
उसे जीना होता हैं ,
गुजर जाने पर भी ,
हर किसी का इश्क़ ,
कहां जिंदा होता है ।।
Dedicated to शहीद Vikram Batra Wife ❤️
No comments:
Post a Comment