Tuesday, August 17, 2021

डिंपल सी मोहबब्त

हम मिले थे बस किस्मत से ,
किस्मत की लकीरें मिटाने को ,
चंद रोज़ की जिंदगी को ,
ताउम्र निभाने को ।

पहली दफा हो या आखिरी ,
सब कुछ नया सा लगता था ,
जब बन कर मेरा साया ,
हर वक्त मेरे साथ तू चलता था ।

आई मुश्किल बहुत और मुसीबत भी ,
पर हाथ कभी हमनें छोड़ा नहीं ,
खाई कसम साथ निभाने की ,
आज तक मुंह जिससे मोड़ा नहीं ।

मांग मेरी सिंदूर से नहीं ,
तुम्हारे रक्त से भरी है ,
चले गए बिन कुछ कहे ,
आखिर क्या हड़बड़ी है ।

मेरा दिल , मेरे जज़्बात और मैं ,
आज भी तेरा ही हुए बैठे हैं ,
फर्क क्या पड़ता है ,
गर जिस्म वो छोड़ बैठे है ।

रूह में ही नहीं सिर्फ ,
मेरे हर हिस्से में तुम बसे हो ,
क्या बताऊं कैसे बताऊं ,
तुम सिर्फ मेरे हो चुके हो ।

मोहब्बत में हासिल करना नहीं ,
उसे जीना होता हैं ,
गुजर जाने पर भी ,
हर किसी का इश्क़ ,
कहां जिंदा होता है ।।



Dedicated to शहीद Vikram Batra Wife ❤️

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