मेरे शब्द मेरा जिक्र और मैं ,
सब तो तुम्हारे हो चुके हैं ,
सौदा दिल का अपने ,
हम शब्दों से कर चुके हैं ।
पढ़ना तुम्हें आसान नहीं ,
फिर भी हम पढ़ते जाते हैं ,
बिना इजाज़त के भी ,
अक्सर दिल लगाते हैं ।
क्या कहना है तुमसे मुझे ,
तुमको मुझसे क्या सुनना है ,
बड़ी मुश्किल में है अल्फाज़ मेरे ,
पता नहीं जिन्हें कब तक छुपे रहना है ।
तुम्हें खो जाने के लिए नहीं ,
खुद से मिलवाने के लिए आया हु ,
देखो ना शब्दों के इस शहर में ,
सौदागर बन कर आया हु ।
रौशनी के तलाश में ,
देखो कितना अंधेरा छाया है ,
चांद भी आज आसमां में ,
छिपने को आया है ।
मैं नहीं मेरे शब्द तुमको ,
अक्सर चुरा कर ले जाते है ,
दिल के सौदागर आज कल ,
क्या खूब मोहबब्त निभाते है ।
शब्दों के सौदागर बन कर ,
फिर तेरे शहर में आएंगे ,
इस दफा चांद से रौशनी ,
तारों से मोहबब्त चुरा लायेंगे ।
दिल ने ये भी कहा है दिल से ,
किसी रोज़ दिल तेरा भी ,
हम चुरा कर ले जाएंगे ,
बस रखना यकीन इस सौदागर का ,
लौट कर फिर जरूर आयेंगे ।।
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