Monday, August 23, 2021

डोर

सज संवर कर तुम ,
कल जब सामने आई थी ,
गुजरे वक्त की यादें ,
मेरे जहन में लौट आई थी ।

तेरी आंखो में बसी मेरी तस्वीर ,
बिंदी में सजी मोहब्बत ,
झुमके का शोर और ,
चूड़ियों की खनखनाहट ।

हर पल हर लम्हा ,
भूल पाना मुश्किल लग रहा ,
पहली सी मोहब्बत ,
अब मैं तुमसे कर रहा ।

इतना श्रंगार कर के ,
जब तुमने खुद को सजाया था ,
सच बताना क्या जिक्र ,
सिर्फ मेरा आया था ।

क्योंकि आंखो में तस्वीर मेरी ,
कुछ धुंधली नजर आ रही ,
होठों पर सजी मोहब्बत ,
कुछ और ही बता रही ।

क्या तुम मुझसे भी जादे ,
अब किसी को चाहने लगी हो ,
हर शाम बाहों में बस कर जिसके ,
दुनिया बसाने लगी हो ।

गर हां तो भला मुझसे ,
खुशनसीब कौन होगा ,
तेरी बाहों से बेहतर ,
जन्नत का सुकून और कहां होगा ।

ताउम्र हम दोनों बंधे है ,
एहसासों के डोर से ,
खो कर एक दूजे में ,
दोनों ही ओर से ।।

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