मेरे शब्द महज़ अल्फाज़ नहीं ,
चिल्लाते मेरे एहसास हैं ,
जो समझो तो अच्छा ,
नहीं समझो तो भी दिल के पास हैं ।
महज़ एक रात से हुआ शुरू सफर ,
कितने दिन में बदल गया ,
सब कुछ तो था अधूरा ,
उसकी मौजूदगी से जो भर गया ।
मेरी धड़कन जो धड़कती है ,
कभी जोर जोर से ,
होता जिक्र सिर्फ तेरा ,
उस वक्त हर ओर से ।
ये शोर सबको सुनाई देता है ,
बस तुझे छोड़ कर ,
ना जाने कैसे कहूं ,
पलके झुका और दिल जोड़ कर ।
तेरे जिक्र भर से आज कल ,
सब कुछ खूबसूरत बन जाता है ,
देखो ये शब्दों का सौदागर भी ,
कैसे शब्द चुराता है ।
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