Sunday, August 29, 2021

श्रृंगार

मैं सज संवर कर ,
उनके लिए तैयार बैठी थी ,
माथे पर बिंदिया और 
हाथों में कंगन पहनी थी ।

जुल्फ़ भी खुली और सुलझी थी ,
और माथे पर टीके का श्रृंगार ,
संग जिसके एक लाल बिंदी थी ।

बस अगर कुछ अधूरा था ,
तो वो था उनका दीदार ,
और झुमके को उनकी मौजूदगी में ,
पहनने को था दिल बेकरार ।

खुद को कभी मैंने ,
ऐसे सजाया ना था ,
मेरे दिल को आज तक ,
आप सा कोई भाया ना था ।

अब मुझे आईने में ,
हम दोनों ही कैद लग रहे थे ,
मेरी आंखों में आप की तस्वीर ,
और उसके आगे हम सवर रहे थे ।

आप की फेरती उंगलियां ,
मेरे कानों पर ,
जुल्फ को हटा रही थीं ,
झुमके से जब मैं खुद को ,
सजा रही थी ।

मैं भी मचली मन भी मचला ,
इसमें कुछ नई सी बात थी ,
तेरे इस छूवन में ,
बिन मौसम बरसात थी ।

मैं सज संवर कर ,
अब बस तेरी हो जाऊंगी ,
अगली दफा तेरी मौजूदगी से ,
खुद को सजाऊंगी ।।

No comments: