Tuesday, August 3, 2021

रोक लिया होता

तुमने रोका क्यों नहीं ,
मुझे टोका क्यों नहीं ,
एक आखिरी दफा !

क्या सच में मेरा दूर जाना ,
तुम्हें होगा मंजूर ,
जिस्म से दूर हो कर भी ,
रूह को होगा सुकून ?

मैं तो मुसफिर रास्तों में ,
एक घर तलाश रहा था ,
इधर उधर भटक कर ,
तुझपर आ टिका था ।

तुमने बिखरने की सुनी कहनियां,
और लोगों से खुद को जोड़ बैठे ,
मेरे हिस्से के अधूरेपन को ,
अंजाने में छोड़ बैठे ।

क्या सच में कोई सवाल नहीं था ,
या मेरे जवाब ही काफी थे ,
अल्फाजों के सौदागर ,
तुम लाए क्यों सिर्फ खामोशी थे ।

गर रोक लिया होता मुझे ,
तो क्या ही बात होती ,
ना अधूरी कल की रात होती ,
शायद तू मेरे साथ होती ।

छोड़ कर जाऊ तुम्हें ,
जब सब बिखरा हुआ है ,
इतना भी खुदगर्ज नहीं ,
एकतरफा ही सही .. है तो मोहब्बत ,
निभाऊंगा हर फर्ज सभी ।

"वैसे भी मुझे उनके बगैर मरना नहीं ,
उनके साथ जीना है" ,
क्या फर्क पड़ता गर ,
मोहब्बत एक तरफा ही होना है ।।

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