Wednesday, August 4, 2021

तेरे बग़ैर

गर ख्वाबों सी तुम ,
होश में भी ,
इतना ही मेरे साथ होती ,
कितनी ख़ूबसूरत ये रात होती ।

तुमने छोड़ कर हाथ मेरा ,
खुद को मुझसे तोड़ दिया ,
एक अंजाने से जुल्म ने ,
मुझे तन्हा छोड़ दिया ।

माना की तुम उलझी हो ,
अपने ही जीत हार में ,
पूरा होकर भी रह गए ,
अधूरे उस प्यार में ।

पर मैं तो तुझमें आ उलझा हू ,
खुद को सुलझाने के लिए ,
तेरे चहरे की मुस्कुराहट से ,
मुस्कुराने के लिए ।

मेरे रूह को मुझ से भी बेहतर
अब तुम पहचानती हो ,
फिर भी ना जाने क्यों  ,
मेरी मोहबब्त को नहीं मानती हो !

तेरे बगैर हर जीत भी ,
शिकस्त सी लगती है ,
तेरी मौजदगी रूह को ,
जिंदगी सी लगती है ।

है इंतजार बस उतना सा तेरा ,
जितनी सी बची हैं सांसे ,
हो सके तो लौटा दो मुझे ,
मेरी वो खूबसूरत रातें ।

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