गर ख्वाबों सी तुम ,
होश में भी ,
इतना ही मेरे साथ होती ,
कितनी ख़ूबसूरत ये रात होती ।
तुमने छोड़ कर हाथ मेरा ,
खुद को मुझसे तोड़ दिया ,
एक अंजाने से जुल्म ने ,
मुझे तन्हा छोड़ दिया ।
माना की तुम उलझी हो ,
अपने ही जीत हार में ,
पूरा होकर भी रह गए ,
अधूरे उस प्यार में ।
पर मैं तो तुझमें आ उलझा हू ,
खुद को सुलझाने के लिए ,
तेरे चहरे की मुस्कुराहट से ,
मुस्कुराने के लिए ।
मेरे रूह को मुझ से भी बेहतर
अब तुम पहचानती हो ,
फिर भी ना जाने क्यों ,
मेरी मोहबब्त को नहीं मानती हो !
तेरे बगैर हर जीत भी ,
शिकस्त सी लगती है ,
तेरी मौजदगी रूह को ,
जिंदगी सी लगती है ।
है इंतजार बस उतना सा तेरा ,
जितनी सी बची हैं सांसे ,
हो सके तो लौटा दो मुझे ,
मेरी वो खूबसूरत रातें ।
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