Wednesday, August 11, 2021

होंठ

गर बात सिर्फ जज़्बात की होती ,
शायद ना इतनी वो खामोश होती ,
चंद लम्हें का ही नहीं होता साथ ,
पूरी जिंदगी वो मेरे साथ होती ।

लबों से उठ कर अल्फाज़ ,
होठों पे जब सज रहे थे ,
ना जाने कितनी दफा ,
हम जी कर भी मर रहे थे ।

कितना सुकून और ठहराव था ,
उनके उस हलचल में ,
डूब रहा था जान कर भी ,
इश्क़ के दलदल में ।

ना अब कोई स्पर्श बचा था ,
और ना ही वो मेरे सामने खड़ा था ,
था तो बस कुछ अधूरा छूट गया ,
शायद जबसे वो हमसे रूठ गया ।

होठों पर बसी मुस्कुराहट उसके ,
बस इकलौता उसका गहना था ,
ना चाह कर भी गहना ,
हमने उससे चुरा लिया ,
जब दिल उसका दुखा दिया ।

ना अब रंगो से ,
कभी भरती है मुस्कुराहट उसकी ,
और ना कभी वो खुद को,
सवारती है ,
होठों के बेरंग होने का ,
गुनेहगार सिर्फ मुझे मानती है ।

पर है हिस्से में मेरे भी कुछ बताने को ,
एक स्पर्श मुस्कुराहट पर छोड़ जाने को ,
पर क्या कभी वो लौट कर आयेगी ,
अंजाने में हुए गुनाहों को माफ कर जाएगी ।

गर हां तो लौट आओ ,
बस अभी इस पल ,
अब और इंतजार ,
मुश्किल लगता है ।


तेरे होठों पर बसती है दुनिया मेरी ,
और तेरी मुस्कुराहट से मोहबब्त है ,
आए तेरा स्पर्श ,
मेरी मौत से पहले ,
आखिरी मेरी बस यही चाहत है ।

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