आसमां में एक तारा था ,
चांद का जो सहारा था ,
अब वो भी कही खो गया ,
शायद आकाश गंगा का हो गया ।
ना कभी टूटा वो आसमां में ,
ना कही पर बिखरा था ,
शायद चांद और तारे के बीच ,
आ गया कोई तीसरा था ।
बदलते वक्त और जज़्बात का ,
देखो ये कैसा खेल है ,
तारे की चमक से दोस्ती ,
ना जाने क्यों लग रही बेमेल है ।
एक ही तो था अनगिनत में ,
चांद जिस तारे को पहचानता ,
ठुकरा कर अपनी ही पहचान ,
कह दिया मैं नहीं इस तारे को जानता ।
उस भीड़ में वो तारा ,
ना जाने क्यों गुम हो गया ,
शायद चांद मोहबब्त निभाने में ,
इस दफा पीछे रह गया ।
कम चमकना चांद का ,
तारों को भाता है ,
चांद के फीका पड़ने पर ,
तारा और टिमटिमाता है ।
बदल कर पहचान अपनी ,
तुमने ये क्या कर दिया ,
भीड़ का हिस्सा बन कर ,
चांद को तन्हां कर दिया ।।
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