Wednesday, August 11, 2021

झुमका

इत्तेफाक देखो वक्त का ,
एक और ख़ूबसूरत मज़ाक कर बैठा ,
अभी चंद रोज ही गुजरे थे ,
गुजरे तुम्हारे ,
किसी और से दिल लगा बैठा ।

ना कोई सूरत और ना कोई सीरत ,
लगता है फिर भी वो बेहद खूबसूरत ,
क्या कमाल का शोर होता है ,
हर दफा फिजाओं में ,
उड़ने को जब उसे कोई छोड़ देता है ।

मेरी नज़र से तुम्हारी नज़र को ,
मिलने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा ,
ना जाने ये खूबसूरत शोर ,
हमें और कितना और घायल करेगा ।

रूह तो अब उनकी हमें ,
थोड़ा पहचानने लगी थी ,
बिन देखे कभी निगाहों के ,
वो सब जानने लगीं थी ।

पहली दफा आज उनको देखा मैंने ,
बस उनके झुमके नज़र आए ,
इश्क़ में थे नहीं अब तक ,
पर दिल वही छोड़ आए ।

ताजमहल सी खूबसूरती जिसकी ,
और ठंडक भरी आहट थी ,
हर दफा गुजरते हवा के झोंके में ,
मानों सिर्फ इश्क़ करने की चाहत थी ।

रंग बदलते उनके और मौसम के ,
सब बदलने लगा था ,
कभी चांदी के संग काला ,
तो कभी जिस्म के रंग के संग ,
वो खिलने लगा था ।

सूरत , सीरत सब अपनी ,
खूबसूरती हार जायेंगे ,
जिस रोज़ झुमकों से ,
लड़ने वो जंग आयेंगे ।।

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