Saturday, July 31, 2021

ताउम्र का एहसास

क्या वक्त दोगी थोड़ा तुम मुझे ,
सब बताने के लिए ,
हर अधुरे अल्फाज़ को ,
पूरा कर जाने के लिए ।

मैं मानता हु कर बैठा गुनाह ,
और तुम्हें अक्सर यू सताता हू ,
कह कर भी सब कुछ ,
अनकहा सा रह जाता हू ।

डर लगता है ,
ये सब बताने में ,
बना बैठा हु घर एक छोटा सा ,
दिल के आशियाने में ।

हर पल हर गुजरते लम्हें के साथ ,
सब और खूबसूरत हो चला है ,
जिस पल से ये दिल ,
तुझसे जा मिला है ।

मुझे आगाज़ खूबसूरत नहीं ,
ताउम्र का एहसास बनाना है ,
हर लम्हें को जिंदगी के ,
तेरी मुस्कुराहाट से सजाना है ।

जो थाम लिया उन हाथों को ,
छोड़ना मुश्किल होगा ,
तू होगा आखिरी ,
जिसका ताउम्र मेरा दिल होगा ।